कुछ तेज़ाब की बूदें
वो मैं जो शीशे में घंटो खुद को निहारा थी करती,
आज पानी में अपनी परछाई देखने से भी हूँ डरती।
जिन मेरे गालों को मेरी माँ प्यार से सहलाया थी करती,
आज उनको देख वो फूट फूट कर है रो पड़ती।
उस एक घड़ी में मेरी जिंदगी किस कदर बदल गयी,
कुछ तेज़ाब की बूदें मेरे अस्तित्व को कलल गयी।
पूंछो उस जालिम से जाके कोई क्या थी मेरी गलती,
एक ना की इतनी बड़ी सज़ा किसे है मिलती।
वो जो हर गली मौहले में मुझसे मोहब्बत के दावे किया था करता,
मोहब्बत के अर्थ को तो वो कभी था ही नहीं ना समझा।
अब उससे में ये पूछना हूँ चाहती,
क्या करेगा इस जले हुए चेहरे से शादी।
जवाब तोह मुझे भी है पता,
मुझसे शादी करने की कैसे कर सकता है वो खता।
प्यार उसे मुझसे नही मेरे चेहरे से था,
अब वही जला डाला तो बचा ही है मुझमे क्या।
Comments
Post a Comment