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Showing posts from January, 2019

Story of a GATE aspirant

Vo college ka aakhri saal, Papa ne pucha beta kya h placement ka haal. Bade garv se bola hum GATE ka form bharenge, Sarkari naukri karenge. Clg k baad boriya bistar uthaye, Pahunch gaye hum kaalu sarai. Phir aaya pehla din class ka, Yun toh clg m hamesha10 min late hone ka record tha. Par socha aaj 10 min jaldi jaata hun, Lekin Bag uthaye centre pahucha toh kya paata hun. Gate se leke 2 km lambi line lagi thi, Kissi ki nazre kitabon m toh kissi ki test papers m gadi thi. Maine Line k aakhri sadasya se pucha, Bhai ye kya h.. teacher nahi aayega ya phir hai aur koi locha. Apni kitabo se Nazre hatane m usse gussa toh bht ayaa, Mere sawal se, race ka naya gadha hun ye bhi usse bakhubhi smjh ayaa. 1 ghante pehle se ye line ka karyakram roz aise hi chalun rahgea, Tum bhi lag jaao warna last seat se toh bus board ki shyahi ka rang hi dikhega. Sun k mera dimaag chakraya , Ye kaunsi nagri m mai hun ayaa. Mai Bola bhai ye baat zara mujhe samjhaye, Ye sab btech ki degree leke

काश उस दिन मैं घर ना जाती

1.2 million children are trafficked worldwide every year. Child prostitution has the highest supply of trafficked children.Story of such a child through poem. स्कूल की घंटी का बेसब्री से इंतेज़ार, बैग उठा के भागने को तैयार। जैसे ही घंटी की आवाज़ सुनाई दी मैं छुटकी कूद के ऑटो मैं बैठी। ऑटो वाले चाचू रोज़ मुझे घर थे ले जाते, बिटिया कहकर थे बुलाते। आज भी ऐसा ही था, उन्होंने मेरा बैग छत पर रखा, बोले बिटिया आज रास्ता बंद है तो घुमा के ले जाना होगा, थोड़ा टाइम लगेगा। मैन बोला ,अच्छा चाचू पर भूख लगी है तो जल्दी पहुचाये तो अच्छा रहेगा। मैं अपनी मस्ती मैं मस्त गुनगुना रही थी, अचानक ऑटो के इंजन की आवाज़ रुकी। मैं 5 मिनट मे आया कहकर चाचू गए कहीँ, उसके बाद ना जाने कहाँ से कुछ लोग आये वहीं बहुत सारी हलचल और एक फिर गहरा सन्नाटा आया, आँख खुली तो खुद को अंधेरे कमरे मैं पाया। कुछ धीमे धीमे सुनने मे आया, कितना मिलेगा आज मस्त टोटा हु लाया। ये तो ऑटो वाले चाचू की आवाज़ थी, वो तो घुमा के घर ले जाने वाले थे, पर इतना समझ आया मैं घर तो नही थी। 15 साल हो गए उस बात को, और आज भी सपनो मैं खोजती हु

A letter to Future Husband

Dear future husband, Kaise honge tum ye khayal baar baar aata h, Aur tumhe imagine kar k ye chehra har baar sharamakar jhuk jaata h. I wonder, Kya tumne bhi mujhe kabhi imagine kiya hoga, Meri tarah kya tumne bhi apne sapno m mujhe jiya hoga. Kya tumne bhi jismani baato se pare rooh se rooh ka rishta bhaata hoga, Meri tarah kya tumne bhi bf-gf ki lambi chain ka kissa samajh nahi aata hoga. Kya tumko bhi shahjahan mumataz ki kahani bhaati hogi, Meri tarah kya tumko bhi daadu daadi ki love story smjh aati hogi. Kya tumko bhi baarish m bheegna bhaata hoga, Meri tarah kya tumne bhi apne saare secrets ko mere liye chipa k rakha hoga. Kya tumne bhi mjhse pehle kissi k haatho ki ungliyon nahi thaami hogi, Meri tarah kya tumne bhi vo icecream sharing ki feeling nahi baati hogi. Kya tumne bhi khud ko mere liye sahejkar rakha hoga, Meri tarah kya tumne bhi unn teen shabdo ko mere liye bachakar rakha hoga. Kaise honge tum ye khayal baar baar aata h, Aur tumhe imagine ka

आज तुझसे है कुछ पूछना

Letter to God by a girl who is brutally raped by group of man.. आज तुझसे है कुछ पूछना, क्यों करी तूने मेरी संरचना, क्या सम्मान मिला मुझे तू देख रहा है, फिर मेरे अस्तित्व का मज़ाक तू कैसे सह रहा है, ना जाने रोज़ इस तरह कितनी बार मैं हूँ मरती, हर पल अपनी जिंदगी के लिए हूँ लड़ती, कहने को तोह मुझ आज भी मंदिरों मैं जाता है पूजा, पर इस अपमान को क्या नाम देगा तू दूजा।

मंदिर या मस्जिद

आखिर दिल के हम सच्चे है, हम Omnist ही अच्छे हैं। धर्मो से ऊपर इंसान को है मानते, जात पात से नहीं लोगो के कर्मो से उन्हे है जानते। कहलो हम दिमाग से कच्चे हैं, हम Omnist ही अच्छे है। मंदिर बनेगा या मस्जिद पे क्यूँ लड़ना, कौन भगवान कहता है तू मेरे ऊपर मरना। किसी का खून बहा के क्या मिलेगा दिल से पूछो, पहले धर्म आया या इंसान ये तोह सोचो। अब तुम बोलोगे की हम बच्चे है, कोई नही हम Omnist ही अच्छे है। मंदिर मस्जिद की लड़ाई से किसका होगा भला, कितना अच्छा हो उस भूमि पे शिक्षा का दीप जाला। कहलो हम दिमाग से कच्चे है, हुम Omnist ही अच्छे है। उस उपरवाले ने बनाया हम सबको एक जैसा, फिर तेरा भगवान हरा और मेरा भगवा क्यों कर दिया हमने ऐसा। अब तुम बोलोगे , हम अधर्मियों के गुच्छे है, क्या करे, हम विद्या को धर्म मानने वाले बच्चे है, हम Omnist ही अच्छे है।

याद आते है वो दिन जब हम बच्चे थे

याद आते है वो दिन जब हम बच्चे थे, दिमाग से कच्चे पर मन के सच्चे थे। ना ओड़ा करते थे कोई मौखोटा, ना पैसे कमाने की दौड़ मैं कोई था लगा। कोई क्या सोचेगा की परेशानी से एकदम दूर, खुल के हँसने के वो दिन थे भरपूर। गर्मियों की छुट्टियों का रहता था बेसब्री से इंतेज़ार ऊंच नीच का पापड़ा खेलने को हर बच्चा रहता था तैयार। तू छोटा , मैं बड़ा की किसको थी पड़ी, लोहा लकड़ मे एक दूसरे का हाथ थाम मिलकर बनाते थे लड़ी। आज वो मुहउल्ले के बच्चे बड़े हो गए हैं, मेट्रो की भीड़ मे ना जाने कहाँ खो गए हैं। वो घंटो की मस्ती आज हाई हेलो में सिमट कर रह गयी, वो नादानियाँ मोबाइल स्क्रीन के पीछे छिप कर रह गयी। दिन भर जो धूल में खेला थे करते, आज तोह मिट्टी में हाथ डालने से भी है डरते। आज सब कुछ बदल गया है, जिंदगी की भीड़ में ना जाने वो बचपना कहीं छूट गया है। याद आते है वो दिन जब हम बच्चे थे, दिमाग से कच्चे पर मन के सच्चे थे।

एक दस्तक

एक दस्तक मुझे आज भी डरा जाती है, जब बचपन की वो खौफनाक याद ज़हन में आती है। बिस्तर के नीचे, गुड़िया बीचे, आंखे मीचे, उन पैरों को ना सुनाई दे ऐसी साँसे खींचे। पर उन घिनौने कदमों ने फिर भी मुझे ढूंढ लिया, प्यार से उठा कर एक चॉक्लेट का डब्बा भी दिया। सात साल की थी मैं, फिर भी देखो ये खेल न्यारा, उस चॉक्लेट का स्वाद लगता था मुझे एकदम खारा। फिर उन्ही हाथो ने मुझे यूँ दबोचा, उन उंगलियों ने मुझे हैवानियत की तरह नोचा। मैं चीखी ,मैं चिल्लाई, लेकिन उस दानव को कहाँ दिया था सुनाई। 2 घण्टे बाद उस दर्दनाक समय का अंत आया, फिर उस क्रूर ने मझे प्यार से समझाया, पापा को मत बताना चाचू क्यों थे आये, बताना चॉक्लेट थे लाये। क्या बताऊ, किसको बताऊं, खुद समझ आये तोह औरो को समझाऊं। चाचू आज भी घर है आते, चॉक्लेट का वो डब्बा आज भी है लाते। वो दस्तक मुझे आज भी है डरा जाती, जब बचपन की वो खौफनाक याद ज़हन मैं है आती।

कुछ तेज़ाब की बूदें

वो मैं जो शीशे में घंटो खुद को निहारा थी करती, आज पानी में अपनी परछाई देखने से भी हूँ डरती। जिन मेरे गालों को मेरी माँ प्यार से सहलाया थी करती, आज उनको देख वो फूट फूट कर है रो पड़ती। उस एक घड़ी में मेरी जिंदगी किस कदर बदल गयी, कुछ तेज़ाब की बूदें मेरे अस्तित्व को कलल गयी। पूंछो उस जालिम से जाके कोई क्या थी मेरी गलती, एक ना की इतनी बड़ी सज़ा किसे है मिलती। वो जो हर गली मौहले में मुझसे मोहब्बत के दावे किया था करता, मोहब्बत के अर्थ को तो वो कभी था ही नहीं ना समझा। अब उससे में ये पूछना हूँ चाहती, क्या करेगा इस जले हुए चेहरे से शादी। जवाब तोह मुझे भी है पता, मुझसे शादी करने की कैसे कर सकता है वो खता। प्यार उसे मुझसे नही मेरे चेहरे से था, अब वही जला डाला तो बचा ही है मुझमे क्या।

मेरे बोले बिना वो कुछ समझ भी कैसे सकती थी

पहली बार देखा था तो शांत सी समझ आई थी। रात के अंधेरे में जुगनू सी नज़र आई थी । चेहरे पर सुबह की धूप सी हँसी थी । उसे देख एहसास हुआ था मानो मेरे सपनों में तो ये हमेशा से बसी थी । कहने को तो वो साँवली सी थी। पर आंखों मैं झांको तो समझ आता उनमे कितनी चंचलता बसी थी। फिर मैंने उसको और जानने की जो बेइन्तहा कोशिश की थी। किस तरह फेसबुक ट्विटर पे फॉलो करने की साजिश रची थी। फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजने की जो उसको हिम्मत करी थी। एक्सेप्ट होने पर खुशी के मारे जो चीख भारी थी। किस तरह कॉलेज में नज़रे छुप छुप कर बस उसी को खोज करती थी। उससे देखने के चक्कर मे जो सारी क्लासेज करी थी। किस तरह उसके पास होने पर दिल की धड़कने भड़ जाया करती थी। हज़ारो बाते होती थी बोलने को फिर भी मुँह पे टेप लग जाया करती थी। किस तरह हिम्मत करके नोट्स लेने के बहाने उससे बात चीत करी थी। कैसे टमाटर जैसे लाल गाल हो गए थे जब वो मेरे सामने खड़ी थी। किस तरह धीरे धीरे वो दोस्ती भड़ी थी। फिर कैसे एक आधा हाई हेलो हो जाया करती थी। फेसबुक टू व्हाट्सएप की जो वो घड़ी थी। आज भी याद है पूरे दिन मेरे चेहरे पे क्या खुशी थी। फिर भी दिल की

माँ - पापा

जब मैं इस धरती पर आई, सारी दुनिया थी घबराई, क्यों एक और लड़की ये आयी, लेकिन माँ पापा तुमने की थी लड़ाई, मेरे होने की तुमने की थी बड़ाई, माँ ने मुझे प्यार से लोरी थी सुनाई, पापा आपने ही तोह मुझे हर शिक्षा थी दिलाई, जब भी परीक्षा की वो घड़ी थी आयी, माँ तुझसे चिपक के ही तोह मुझे गहरी नींद थी आयी, जब मेरी चॉक्लेट की फरमाइश थी आयी, पापा आपने ही तोह अपनी दवाई ना लेकर मुझे चॉक्लेट थी दिलाई, तुझे याद है माँ खुद दुध ना पीकर तूने मुझे मेवा थी खिलायी, पापा किस तरह आपने मेरी पढ़ाई के लिए देर रात तक दुकान पै की थी कमाई, जब जब मैं घबराई, आप दोनों ने ही तोह मेरा हाथ पकड़कर मेरी हिम्मत थी भड़ाई, जब भी घनघोर बारिश की वो काली रात आयी, आपने एकलौती छतरी मुझे थी थमाई, आप दोनों ने ही तोह मेरी जिंदगी है बनाई, कहती हूँ एक बात जो मै कभी ना कह पायी, मैं बहुत खुशनसीब हुन की इस धरती पर मैं आपके घर आई।

कभी हू मैं ये सोचती, क्या सिर्फ बेटी होना है मेरी गलती

कभी हू मैं ये सोचती, क्या सिर्फ बेटी होना है मेरी गलती । क्यों मेरी माँ ने मझे मारने की कोशिश करने से पहले एक बार ना सोचा, क्यों रिश्तेदारों ने मेरे आने से पहले ही मुझे इतना कोसा । जब गलती से मैं इस दुनिया मे आयी, दहेज की चिंता अपने संग लायी । माँ ने सिखाया बेटी पराया धन, औरत को हर बार मारना पड़ता है अपना मन । पापा ने समझाया बाहर कम जा, क्योंकि औरत है खुली तिजोरी, हर दानव करने को तैयार है इसकी चोरी । जब बड़ी हुई तो दुनिया ने कमजोरी का एहसास कराया, बेटी को घर के बाहर अकेले भेजने का जमाना नही कह कर मुझे घर मे बंद कराया । कलम पकड़ने की उम्र मे, छुरी चाकू थमाया, ससुराल जाकर नाक कटायेगी यह वाक्य हर बार दोहराया । भाई को कॉलेज और मुझे मिला करछी का तोहफ़ा, फिर भी मैन अपने मन को मारा और आँसुओ को रोका । आयी मेरी शादी की बारी, लेकिन ये क्या मेरी नही दहेज की माँग कर रही थी दुनिया सारी । दहेज न जुटा पाने पर पापा की आंखों मे मेरे पैदा होने का जो अफसोस था, उसे देख नही रुका सैलाब मेरे आसुओं का । क्यों मेरे गुणों की जगह मुझे पैसो से है तोला जाता, क्यों मुझे भोग विलास की वस्तु है समझा ज