कभी हू मैं ये सोचती, क्या सिर्फ बेटी होना है मेरी गलती

कभी हू मैं ये सोचती,
क्या सिर्फ बेटी होना है मेरी गलती ।
क्यों मेरी माँ ने मझे मारने की कोशिश करने से पहले एक बार ना सोचा,
क्यों रिश्तेदारों ने मेरे आने से पहले ही मुझे इतना कोसा ।
जब गलती से मैं इस दुनिया मे आयी,
दहेज की चिंता अपने संग लायी ।
माँ ने सिखाया बेटी पराया धन,
औरत को हर बार मारना पड़ता है अपना मन ।
पापा ने समझाया बाहर कम जा, क्योंकि औरत है खुली तिजोरी,
हर दानव करने को तैयार है इसकी चोरी ।
जब बड़ी हुई तो दुनिया ने कमजोरी का एहसास कराया,
बेटी को घर के बाहर अकेले भेजने का जमाना नही कह कर मुझे घर मे बंद कराया ।
कलम पकड़ने की उम्र मे, छुरी चाकू थमाया,
ससुराल जाकर नाक कटायेगी यह वाक्य हर बार दोहराया ।
भाई को कॉलेज और मुझे मिला करछी का तोहफ़ा,
फिर भी मैन अपने मन को मारा और आँसुओ को रोका ।
आयी मेरी शादी की बारी,
लेकिन ये क्या मेरी नही दहेज की माँग कर रही थी दुनिया सारी ।
दहेज न जुटा पाने पर पापा की आंखों मे मेरे पैदा होने का जो अफसोस था,
उसे देख नही रुका सैलाब मेरे आसुओं का ।
क्यों मेरे गुणों की जगह मुझे पैसो से है तोला जाता,
क्यों मुझे भोग विलास की वस्तु है समझा जाता ।
मंदिरों मे देवी को पूजने तो सब है जाते,
फिर औरत के अस्तिव को तुम क्यों नही समझ पाते ।
इन् सब सवालो को जब मै हु सोचती,
तो समझ आता शायद बेटी होना ही है मेरी गलती ।

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