काश उस दिन मैं घर ना जाती

1.2 million children are trafficked worldwide every year. Child prostitution has the highest supply of trafficked children.Story of such a child through poem.

स्कूल की घंटी का बेसब्री से इंतेज़ार,
बैग उठा के भागने को तैयार।
जैसे ही घंटी की आवाज़ सुनाई दी
मैं छुटकी कूद के ऑटो मैं बैठी।
ऑटो वाले चाचू रोज़ मुझे घर थे ले जाते,
बिटिया कहकर थे बुलाते।
आज भी ऐसा ही था,
उन्होंने मेरा बैग छत पर रखा,
बोले बिटिया आज रास्ता बंद है तो घुमा के ले जाना होगा, थोड़ा टाइम लगेगा।
मैन बोला ,अच्छा चाचू पर भूख लगी है तो जल्दी पहुचाये तो अच्छा रहेगा।
मैं अपनी मस्ती मैं मस्त गुनगुना रही थी,
अचानक ऑटो के इंजन की आवाज़ रुकी।
मैं 5 मिनट मे आया कहकर चाचू गए कहीँ,
उसके बाद ना जाने कहाँ से कुछ लोग आये वहीं
बहुत सारी हलचल और एक फिर गहरा सन्नाटा आया,
आँख खुली तो खुद को अंधेरे कमरे मैं पाया।
कुछ धीमे धीमे सुनने मे आया,
कितना मिलेगा आज मस्त टोटा हु लाया।
ये तो ऑटो वाले चाचू की आवाज़ थी,
वो तो घुमा के घर ले जाने वाले थे, पर इतना समझ आया मैं घर तो नही थी।
15 साल हो गए उस बात को,
और आज भी सपनो मैं खोजती हु अपने घर को।
रोज़ मेरे जिस्म का सौदा है होता,
वैश्या कह के मेरा संबोधन है होता।
वो रोज़ जो इस कमरे मे मेरी इज़्ज़त की धज्जियां है उड़ाते,
बाहर की दुनिया मैं खूब इज़्ज़त है कमाते।
क्यूँ समाज मझे इस कदर है देखता,
वैश्या को बनाने वाले उस मर्द को क्यूं नही कुछ पूछता।
ये कैसा अन्याय है ये मुझे समझाओ,
इस दलदल से निकलू तो कैसे निकलू ये तो बताओ।
वो छुटकी आज भी है चाहती,
काश उस दिन मैं घर ना जाती।
स्कूल मैं ही रुक जाती,
माँ को लेने बुलाती,
काश उस दिन मैं घर ना जाती।

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