एक दस्तक
एक दस्तक मुझे आज भी डरा जाती है,
जब बचपन की वो खौफनाक याद ज़हन में आती है।
बिस्तर के नीचे, गुड़िया बीचे, आंखे मीचे,
उन पैरों को ना सुनाई दे ऐसी साँसे खींचे।
पर उन घिनौने कदमों ने फिर भी मुझे ढूंढ लिया,
प्यार से उठा कर एक चॉक्लेट का डब्बा भी दिया।
सात साल की थी मैं, फिर भी देखो ये खेल न्यारा,
उस चॉक्लेट का स्वाद लगता था मुझे एकदम खारा।
फिर उन्ही हाथो ने मुझे यूँ दबोचा,
उन उंगलियों ने मुझे हैवानियत की तरह नोचा।
मैं चीखी ,मैं चिल्लाई,
लेकिन उस दानव को कहाँ दिया था सुनाई।
2 घण्टे बाद उस दर्दनाक समय का अंत आया,
फिर उस क्रूर ने मझे प्यार से समझाया,
पापा को मत बताना चाचू क्यों थे आये,
बताना चॉक्लेट थे लाये।
क्या बताऊ, किसको बताऊं,
खुद समझ आये तोह औरो को समझाऊं।
चाचू आज भी घर है आते,
चॉक्लेट का वो डब्बा आज भी है लाते।
वो दस्तक मुझे आज भी है डरा जाती,
जब बचपन की वो खौफनाक याद ज़हन मैं है आती।
Comments
Post a Comment