मेरे बोले बिना वो कुछ समझ भी कैसे सकती थी
पहली बार देखा था तो शांत सी समझ आई थी।
रात के अंधेरे में जुगनू सी नज़र आई थी ।
चेहरे पर सुबह की धूप सी हँसी थी ।
उसे देख एहसास हुआ था मानो मेरे सपनों में तो ये हमेशा से बसी थी ।
कहने को तो वो साँवली सी थी।
पर आंखों मैं झांको तो समझ आता उनमे कितनी चंचलता बसी थी।
फिर मैंने उसको और जानने की जो बेइन्तहा कोशिश की थी।
किस तरह फेसबुक ट्विटर पे फॉलो करने की साजिश रची थी।
फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजने की जो उसको हिम्मत करी थी।
एक्सेप्ट होने पर खुशी के मारे जो चीख भारी थी।
किस तरह कॉलेज में नज़रे छुप छुप कर बस उसी को खोज करती थी।
उससे देखने के चक्कर मे जो सारी क्लासेज करी थी।
किस तरह उसके पास होने पर दिल की धड़कने भड़ जाया करती थी।
हज़ारो बाते होती थी बोलने को फिर भी मुँह पे टेप लग जाया करती थी।
किस तरह हिम्मत करके नोट्स लेने के बहाने उससे बात चीत करी थी।
कैसे टमाटर जैसे लाल गाल हो गए थे जब वो मेरे सामने खड़ी थी।
किस तरह धीरे धीरे वो दोस्ती भड़ी थी।
फिर कैसे एक आधा हाई हेलो हो जाया करती थी।
फेसबुक टू व्हाट्सएप की जो वो घड़ी थी।
आज भी याद है पूरे दिन मेरे चेहरे पे क्या खुशी थी।
फिर भी दिल की बात बोलने की हिम्मत किसे थी।
समय की कड़ी रेत की तरह फिसल रही थी।
इसी बीच मुझसे पहले वो किसी ओर की हो चुकी थी।
शायद सबके पीछे कहीं मेरी ही तो गलती थी।
मेरे बोले बिना वो कुछ समझ भी कैसे सकती थी।
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