सीता माँ - अद्भुत चरित्र

वो महलों में रहने वाली,
क्या क्या दुख नहीं उठाती है,
विवाह के तुरंत बाद
श्री राम संग वन में कष्ट भोगने निकल जाती है,
वो अर्धांगिनी होने का हर कर्तव्य कितनी शिद्दत से निभाती है,
वो महलों में रहने वाली,
क्या क्या दुख नहीं उठाती है,
लंका में एक पेड़ के नीचे,
कड़ी धूप,  बारिश, तूफान सब सह जाती है,
वो राक्षसीयों की हुँकार से भी ना घबराती है,
वो महलों में रहने वाली,
क्या क्या दुख नहीं उठाती है,
रावण की दौलत, शौहरत सब पल में ठुकराती है,
एक घास के तिनके से,
उस पापी का अहंकार मिट्टी में मिलती है,
वो महलों में रहने वाली,
क्या क्या दुख नहीं उठाती है,
अपने श्री राम के इंतेज़ार में,
वो एक एक पल कितनी व्याकुलता से बिताती है,
धन, वैभव, आराम से भड़कर
धर्म, कर्त्तव्य और चरित्रता की राह बतलाती है,
हर युग को पतिव्रता शब्द की परिभाषा सिखाती है,
नारी चरित्र का कितना सुंदर उदहारण दिखाती है,
वो महलों में रहने वाली,
क्या क्या दुख नहीं उठाती है...

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